गौठान योजना की बंदी पर भड़के जनप्रतिनिधि — (पंचायत अधिकारों का हनन) करोड़ों की संपत्ति बेकार, ग्रामीण आजीविका खतरे में

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रिपोर्टर – मो युसूफ खान दुर्ग ग्रामीण
Ⓜ️ 9179799491

रिसामा/दुर्ग | 05 अगस्त 2025
ग्राम पंचायत रिसामा (जनपद पंचायत दुर्ग) में पूर्ववर्ती सरकार की महत्त्वाकांक्षी “गोधन न्याय योजना” के तहत निर्मित गौठान का निरीक्षण जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों की उपस्थिति में किया गया।
इस निरीक्षण ने न केवल शासन की लापरवाहियों को उजागर किया, बल्कि यह भी साबित किया कि वर्तमान सरकार की नीतियाँ ग्राम पंचायतों के संवैधानिक अधिकारों को सीधे प्रभावित कर रही हैं।

*निरीक्षण में जनपद सदस्य ढालेश साहू, सरपंच रोशन साहू, गौठान समिति अध्यक्ष ओमप्रकाश धीवर एवं पंचगण – श्रीमती माधुरी साहू, अनिता शर्मा, वंदना साहू, काल्याणी पटेल, नंदनी माहरा, राही निषाद, ओम धीवर, मुकेश साहू, भूपेन्द्र साहू, मना साहू सहित दर्जनों ग्रामीणजन उपस्थित रहे।*

*बंद पड़ी योजनाएं, वीरान पड़े संसाधन*

निरीक्षण में सामने आया कि गोधन न्याय योजना के तहत बकरी पालन, मुर्गी पालन, डबरी, वर्मी टैंक, पशु शेड, अजोला टैंक, कचरा पृथक्करण केन्द्र, सब्जी बाड़ी, चारागाह, बोरवेल, डोमशेड व वर्कशेड जैसे लगभग 20 से अधिक स्थायी ढांचों का निर्माण किया गया था।लेकिन योजना को वर्तमान सरकार द्वारा अचानक बंद कर देने के कारण ये सभी संसाधन आज वीरान पड़े हैं *— न संचालन, न देखरेख, न उपयोग।*

*शासन के आदेश और पंचायत अधिकारों की अनदेखी*

निरीक्षण के बाद ढालेश साहू ने शासन के आदेश क्रमांक पं./एजा/वि/22/2019/461 दिनांक 01.10.2019 एवं आदेश क्रमांक 312/2020/56 दिनांक 07.02.2020 का हवाला देते हुए बताया कि:
छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 की धारा 49 (29) के अंतर्गत प्रत्येक ग्राम पंचायत में “ग्राम गौठान समिति” और “ग्राम गौठान प्रबंधन समिति” का गठन अनिवार्य है।
इन समितियों में सरपंच, पंच, स्थानीय स्वयंसेवी, कृषक, पशुपालक, आजीविका समूहों के सदस्य शामिल होते हैं।
यह समितियाँ ग्राम सभा के अनुमोदन से संचालित होती हैं और ग्राम पंचायत की अर्थव्यवस्था का हिस्सा होती हैं।ऐसे में बिना ग्राम सभा की सहमति, बिना कोई वैधानिक संशोधन, सरकार द्वारा योजना को बंद करना संविधान और पंचायत राज अधिनियम का सीधा उल्लंघन है।

*ग्राम सभा को निष्क्रिय बनाना संविधान के विपरीत*

ग्राम सभा भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद है, जो पंचायत को योजनाओं में निर्णय का अधिकार देती है। गौठानों की बंदी न केवल ग्राम सभा के निर्णय को नजरअंदाज करना है, बल्कि संविधान की 73वीं अनुसूची का अपमान है।

*ढालेश साहू ने यह भी कहा:*

> “सरकार को स्पष्ट करना होगा कि क्या वह संविधान से ऊपर है? पंचायतों को अधिकार देकर अगर योजनाएँ बनाई जाती हैं और बाद में उसे बिना ग्राम सभा की अनुमति के बंद किया जाता है, तो यह तानाशाही है।”

रिसामा का गौठान आज पूरे प्रदेश के गांवों की वास्तविकता दर्शा रहा है — जहाँ कभी ग्राम विकास की आशा थी, वहां अब उपेक्षा और जर्जर ढांचे बचे हैं।
सरकार को चाहिए कि वह पंचायतों के अधिकारों को राजनीतिक नहीं, संवैधानिक दृष्टि से देखना चाहिए।

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