



रिपोर्ट – मो युसूफ खान जिला ब्यूरो चीफ♏- 9179799491
सरकारी स्कूल में भोजन की गारंटी वरन शिक्षा की नहीं गारंटी को चरितार्थ कर रहा आलबरस स्कूल
अंडा/ नोनीहालों का भविष्य संवारने के लिए भले ही सरकार तमाम कोशिशें कर रही है ।लेकिन सरकारी स्कूल के जिम्मेदार अधिकारियों के अनदेखी वह उदासीन रवैया वही लापरवाह शिक्षक के कारण सरकारी योजनाओं पर बट्टा लगाने का काम कर रहे हैं,।प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद भी शिक्षा विभाग में जमकर भर्रा शाही रीति नीति चल रही है , जनता के लिए जनहित योजनाओं का भाजपा सरकार खुद की वाहवाही बटोर कर अपनी पीठ थपथपा रही हैं जिले में जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों को अपनी एसी कमरे से निकलने की तनिक भी फुर्सत नहीं है। मानो देहातों में शिक्षा का बुरा हाल है, कहीं बच्चे हैं तो कहीं शिक्षक नहीं है, सरकारी सिस्टम को देखकर सवाल या निशान उठना लाजिमी हैस्कूल में भोजन की गारंटी है लेकिन शिक्षा की गारंटी बिल्कुल नहीं है। स्कूलों में पढ़ाई का स्तर काफी कमजोर होने से दिनों दिन शिक्षा का ग्राफ गिर रहा है। प्राइमरी स्कूल के बच्चों को मात्रा से लेकर बारहखड़ी तक भी बोलने नहीं आता है। वहीं सरकार इस वर्ष पांचवीं व आठवीं बोर्ड परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है । जिम्मेदार अधिकारियों के कदम सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते, शिक्षक समय पर स्कूल नहीं पहुंचते हैं, स्कूलों में एनजीओ द्वाराआयो
डीन तरह-तरह के प्रयोग कर परीक्षा लेकर सरकारी स्कूल को मानो प्रयोगशाला बना दिया गया है।कोई दुर्ग जिले में स्कूलों की स्वास्थ्य शिक्षा व्यवस्था के लिए संकुल केदो में 176 संकुल समन्वयक बीते दशकों से बर्फ की भांति अपनी राजनीतिक पहुंच व चापलूसी के कारण एक ही स्कूल में जमे हुए हैं।, जिसके कारण सीएसी अपनी मनमर्जी से स्कूल आते जाते हैं, दूसरे स्कूल में पदस्थ रहते हुए अन्य संकुल केंद्र में आखिर कैसे संकुल समन्वयक बने हुए हैं। सवालिया निशान उठना है, वहीं सीएससी को अपने मूल पद पर स्थापना स्कूल में बच्चो को तीन कालखंड पढ़ाना है लेकिन कई शिक्षक नहीं पढ़ाते , मानो लगता हैं कुछ शिक्षको के ऊपर सीधे नेताओं का हाथ व आशीर्वाद होने के अधिकारी भी आंख मूंदकर बैठ कर धृतराष्ट्र बनकर बैठे हैं ।
वहीं दुर्ग विकास खंड के शासकीय प्राथमिक शाला व संलग्न कन्यशाला के स्कूली बच्चे गणतंत्र दिवस पर शिक्षकों ने बच्चों को स्कूल में काफी किताब नहीं मंगा कर घरों से रापा कुदारी हसिया मंगा कर स्कूलों में घास फूस झाड़ियां को नौनिहालों से सफाई करवा रहे थे ।गौर हो कि छोटे बच्चे होने के कारण बीमारी होने का भी खतरा बना रहता है। जबकि स्कूल में प्रतिवर्ष हजारों रुपए स्कूल की व्यवस्था के लिए फंड आता है।, फिर भी हजारों रूपए खर्च के नाम व्यारे न्यारे होते है,स्कूल में नौनिहाल बच्चे पसीना बहाते दिखे वहीं राष्ट्रीय बालिका दिवस पर जहां कई स्कूलों में बेटियों का सम्मान हो रहा था। वही जो स्कूल मेंबेटियां झाड़ू लगा साफ करने में जुटी थी ।जिन स्कूली बच्चों के हाथ में काफी किताब होनी चाहिए वह धूल से सने होकर पसीना बहा रहे थे। राष्ट्रीय बालिका दिवस पर जहां एक और कई स्कूलों में बेटियों का सम्मान हो रहा था । वही आलबरस स्कूल की बेटियां काम करते पसीना बहा रही थी।