आदिवासी सामुदायिक भवन परिसर के सामने मैदान में ग्रामीणों के भारी विरोध के बीच हुई लोक सुनवाई, क्षेत्र में खदानों की भरमार के बाद भी चुनकट्टा के ज्यादातर ग्रामीणों ने खदान खोलने में दी सहमति

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पाटन, ग्राम चुनकट्टा में 1.58 हेक्टेयर भूमि में चूना पत्थर उत्खनन के लिए शुक्रवार को आदिवासी सामुदायिक भवन परिसर के सामने मैदान में ग्रामीणों के भारी विरोध के बीच की गईं लोक सुनवाई, जनसुनवाई में अपर कलेक्टर अरविंद एक्का, एसडीएम लवकेश ध्रुव, एसडीओपी आशीष बंछोर, पर्यावरण विभाग के अफसर व स्थानीय अधिकारी भी मौजूद थे। जनसुनवाई के दौरान गांव में चूना पत्थर उत्खनन के लिए खदान खुलने का पहले से दंश झेल रहे लोगों ने पुरजोर विरोध किया लेकिन वही ज्यादातर चुनकट्टा के ग्रामीनो ने ही खुलकर इसका समर्थन भी किया।

कमल अग्रवाल द्वारा नई खदान खोलने के लिए आवेदन पेश किया गया था, जिस पर जन सुनवाई का आयोजन प्रशासन ने किया था, जिसमें प्रशासन द्वारा क्या निर्णय लिया जाता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा ।जनसुनवाई में पक्ष व विपक्ष में दावा आपत्ति भी लिया गया तथा इस जन सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई गई है। इसके सम्बंध में निर्णय पर्यावरण संरक्षण विभाग जिला मुख्यालय द्वारा किया जाएगा कि उक्त खदान खोली जाएगी या फिर नहीं।

गौरतलब हो की सेलूद क्षेत्र ग्राम चुनकट्टा, मुड़पार, पतोरा, छाटा, गोंडपेंड्री, अचानकपुर, दौर, परसाहि, धौराभाठा में चूना पत्थर खदान एवं क्रशर की भरमार है। खदान अब बस्ती तक पहुंच रहा है। पहले ही क्षेत्र के लोग क्रशर खदानों की भरमार और वहां होने वाले धमाकों से नारकीय जीवन जीने मजबूर हैं। दिन-रात वाहनों में गौण खनिज के अवैध परिवहन व उत्खनन से लोग हलाकान है।

यहां के कई क्रशर खदान जरूरत से ज्यादा गड्ढा खोदकर बंद हो गए हैं, फिर भी इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। अभी पाटन तहसील क्षेत्र के चुनकट्टा गांव में 1.58 हेक्टेयर भूमि में चूना पत्थर उत्खनन किया जाना प्रस्तावित है। यहां 30 हजार टन प्रतिवर्ष उत्खनन के पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए शुक्रवार को जनसुनवाई हुई, जिसमें चुनकट्टा,मुड़पार सहित आसपास के कई ग्रामीणों ने भारी विरोध भी किया। लोगों का कहना था कि पहले ही क्षेत्र में क्रशर खदानों की भरमार है, जिसके धूल और धमाकों से लोग हलाकान है। फिर चूना पत्थर खदान खोलकर लोगों को प्रदूषण में झोंकने की तैयारी की जा रही है। विरोध करने वाले ग्रामीणों का कहना था कि स्वीकृति प्रदान करने वाले अधिकारी एक सप्ताह इन गावों में रहकर देखे की हम ग्रामीणों की स्थिति कैसी है। खदान की स्वीकृति नहीं दिए जाने वालों ने अपने तर्क में कहा की पहले जिन खदानों में पर्यावरण स्वीकृति दी गई है उनमें से ज्यादातर में नियमों का पालन नहीं किया जाता,ब्लास्टिंग के दौरान कई बार पत्थर घरों में गिरता है। ब्लास्टिंग के दौरान भूकंप जैसे घटके महसूस होता है,क्रेशर से उड़ने वाले धूल के गुबार के कारण कोहरा जैसा वातावरण रहता है।

बस्ती से महज कुछ दूरी पर है प्रस्तावित खदान….

कमल अग्रवाल द्वारा जिस जगह पर चुना पत्थर उत्तखनन के लिए जनसुनवाई हुई उस स्थल से गांव की मुख्य मंदिर शीतला महज कुछ ही दूरी पर है। कुछ घरों की दूरी 100 मीटर से भी कम होगी। बड़ा सवाल ये है की आखिर किस आधार पर उक्त स्थल का किस आधार पर भौतिक सत्यापन हुआ होगा ये एक सवाल बनकर रह गया और खदान संचालन के लिए पर्यावरण की स्वीकृति हेतु जनसुनवाई भी हो गया।

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